वाराणसी ज्ञानवापी में फैसला-हिंदू पक्ष का दावा सुनने योग्य

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वाराणसी- ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी केस मामले में नियमित दर्शन पूजन के मामले मे आज सोमवार को जिला अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है. वाराणसी के जिला अदालत कोर्ट ने हिन्दुओं के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाते हुए उनकी मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि मस्जिद कमेटी की तरफ से दाखिल याचिका 7 रूल 11 की तहत यह केस नहीं आता और हिंदू पक्ष का दावा सुनने योग्य है. इस फैसले के बाद अब मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी. जिला जज डा. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मुकदमे की मेंटेनेबिलिटी यानी मुकदमा चलने योग्य है या नहीं इस पर अपना फैसला सुना दिया है. मई और जून में पूरे देश में यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ था. फैसला आने के बाद हिंदू पक्ष ने खुशी जाहिर की तो मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखताने का निर्णय लिया है.

ओवैसी की तीखी प्रतिक्रिया

ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामले में वाराणसी की जिला अदालत से असहमति जताई है. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अदालत के फैसले से तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा है कि, उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद मामले के रास्ते पर ही ज्ञानवापी मामले को ले जाया जा रहा है. साथ ही उन्होंने दावा किया कि अब उपासना अधिनियम 1991का कोई मतलब नहीं रह गया है. उन्होंने आगे कहा कि इस अधिनियम को इसीलिए लाया गया था ताकि देश में धर्म स्थलों को लेकर विवाद थम जाएं, लेकिन इस मामले में अदालत ने ये सोंचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम वापस 80-90 के दशक में जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि इससे देश में अस्थिरता की स्थिति पैदा हो जाएगी. बाबरी विवाद का जिक्र करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि मैने उस समय भी यही कहा था.

हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने कहा सत्य की जीत

जिला जज के आदेश के बाद हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने इसे सत्य की जीत करार दिया. उन्होंने कहा, अब हम आर्कियोलॉजिकल सर्वे की मांग करेंगे. कमीशन की कार्रवाई में काफी हद तक स्थिति साफ हो चुकी है. हम ज्ञानवापी की सच्चाई सामने लाने के लिए सभी तथ्यों को अदालत में रखेंगे. आगे भी हमारी जीत निश्चित है.

मुस्लिम पक्ष खटखटाएंगा ऊपरी अदालत का दरवाजा

मुस्लिम पक्ष के वकील मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा है कि यह फैसला न्यायोचित नहीं है. उन्होंने कहा, हम फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे. जज साहब ने फैसला 1991 के संसद के कानून को दरकिनार कर दिया है. ऊपरी अदालत के दरवाजे हमारे लिए खुले हैं. न्यायपालिका आपकी है, आप संसद के नियम को नहीं मानेंगे.

फैसले से पहले धारा 144 लागू था

अदालत का फैसला आने से पहले ही वाराणसी का प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट हो गया था. कचहरी परिसर की गहन चेकिंग की गई, बम निरोधक दस्ता और डाग स्क्वाड के संग पुलिस ने चप्पे-चप्पे की चेकिंग हुई. पुलिस आयुक्त ए सतीश गणेश ने भी सभी से शांति की अपील की और शहर में 144 धारा भी लागू कर दी थी. बड़े निर्णय और संभावित हंगामा को लेकर सभी पुलिस अधिकारियों की बैठक  हुई.  सभी थानेदारों, एसीपी, एडीसीपी और डीसीपी को अतिरिक्त सतर्कता के साथ ड्यूटी करने को कहा गया. मिश्रित आबादी वाले संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च एवं फुट पेट्रोलिंग करने के निर्देश था. बहरहाल मामला शांतिपूर्ण है.

जिला जज ने फैसला रखा था सुरक्षित, 24 अगस्त को को हुई थी बहस पूरी

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जिला जज की अदालत ने श्रृंगार गौरी मामले में 24 अगस्त को सभी पक्षों की बहस पूरी कर ली थी और जिला जज ने 12 सितंबर तक के लिए फैसला सुरक्षित रखा था. दरअसल, इस मामले में तत्कालीन सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने सर्वे का आदेश जारी किया था. इसके बाद ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर का सर्वे किया गया था. इसी सर्वे के बाद मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग के होने का दावा किया गया, वहीं मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया. इस मामले में विवाद इतना बढ़ गया कि सर्वे के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया कमेटी सुप्रीम कोर्ट चली गई. सुप्रीम कोर्ट ने मामला सुनवाई योग्य है या नहीं पर फैसले लिए इस मुकदमे को जिला जज की अदालत में भेज दिया था.

आधा दर्जन से ज्यादा मुकदमे हैं लंबित

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आधा दर्जन से ज्यादा मुकदमे अलग-अलग कोर्ट में लंबित हैं. श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन पूजन का मामला राखी सिंह और अन्य चार महिलाओं द्वारा वाराणसी के अदालत में दायर किया गया था. मामले में मुस्लिम पक्ष यानी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर में प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट, 1991 लागू होगा. यानी देश की आजादी के दिन धार्मिक स्थल की जो स्थिति थी, वही रहेगी. जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. हिंदू पक्ष की महिलाओं का दावा है कि ज्ञानवापी में प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजंस) एक्ट, 1991 लागू नहीं होगा, इसपर कोर्ट ने मुहर लगा दी.

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