हर हर महादेव-महाकाल लोक राष्ट्र को समर्पित

Ujjain: विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल के प्रांगण में बना श्री महाकाल लोक का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों संपन्न हो गया. इसी के साथ,भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एमपी के उज्जैन में श्री महाकाल लोक में महाकाल लोक परियोजना का पहला चरण राष्ट्र को समर्पित किया. इससे पहले पीएम मोदी ने तकरीबन आधे घंटे तक महाकाल का पूजन किया तथा भव्य महाकाल लोक का इलेक्ट्रीक गाड़ी में सवार होकर पुरे परिसर का मुयाअना किया तथा अन्य मंदिरों के भी दर्शन किए. इस दौरान उनके साथ सीएम शिवराज, ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज्यपाल मंगुभाई पटेल भी मौजूद थे. महाकाल मंदिर के मुख्य पुजारी पं. घनश्याम ने पीएम मोदी को पूजन विधिपुर्वक संपन्न कराई. विशेष पूजा को देखते हुए महाकाल शिवलिंग का शृंगार सादगीपूर्ण तरीके से ही किया गया था.अब महाकाल लोक को जनता के लिए खोल दिया जाएगा. महाकाल लोक की भव्यता देखते ही बन रही है. महाकाल परिसर का विस्तार 20 हेक्टेयर में किया जा रहा है जो युपी के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना बड़ा होगा.काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 5 हेक्टेयर में फैला है.

महाकाल का पूजन करनेवाले पीएम मोदी चौथे प्रधानमंत्री

पीएम मोदी महाकाल का पूजन करने वाले देश के चौथे प्रधानमंत्री हैं. उनके पहले सन 1959 में पंडित जवाहरलाल नेहरू, 1977 में मोरारजी देसाई और 1988 में राजीव गांधी ने बाबा महाकाल के दर्शन कर पूजा-अर्चना की थी.

पीएम मोदी ने किया विशाल जनसभा को भी संबोधित

महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद प्रधानमंत्री मोदी और शिवराज सिंह ने जनता को संबोधित किया. सबसे पहले मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह ने संक्षिप्त संबोधन पीएम मोदी की जमकर तारीफ की और फिर वहां उपस्थित जनसमूह से तालियां बजवाकर पीएम मोदी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया.

हर हर महादेव के साथ पीएम का संबोधन- कहा उज्जैन भारत की आत्मा का भी केंद्र

पीएम मोदी ने अपना संबोधन हर हर महादेव से शुरू किया. उन्होंने कहा कि उज्जैन की यह ऊर्जा, यह उत्साह, अवंतिका की यह आभा, यह अद्भुत यह आनंद, महाकाल की यह महिमा, यह महात्म्य, शंकर के सान्निपरिसरध्य में कुछ भी साधारण नहीं है,असाधारण है. यह महसूस कर रहा हूं कि हमारी तपस्या से महाकाल प्रसन्न होते हैं तो ऐसे ही भव्य स्वरूपों का निर्माण होता है. जब महाकाल का आशीर्वाद मिलता है तो काल की रेखाएं मिट जाती हैं. समय की सीमाएं मिट जाती हैं और अंत से अनंत की यात्रा आरंभ हो जाती है. महाकाल लोक की यह भव्यता भी समय की सीमा से परे आने वाली कई पीढ़ियों को आलौकिक दिव्यता के दर्शन कराएगी. भारत की अध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को ऊर्जा देगी. मैं इस अद्भुत अवसर पर राजाधिराज महाकाल के चरणों में शत-शत नमन करता हूं. मैं आप सभी को देश-दुनिया में महाकाल के सभी भक्तों को ह्दय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं. विशेष रूप से भाई शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार, उनका मैं ह्दय से अभिनंदन करता हूं जो लगातार इतने समर्पण से इस सेवा यज्ञ में लगे हुए हैं.

पीएम मोदी ने कहा कि, महाकाल की नगरी उज्जैन के बारे में हमारे यहां कहा गया है कि प्रलयो न बाधते, तत्र महाकाल पुरी अर्थात्, महाकाल की नगरी प्रलय के प्रहार से भी मुक्त है. हजारों वर्ष पूर्व जब भारत का भौगोलिक स्वरूप आज से अलग रहा होगा तब से यह माना जाता रहा है कि उज्जैन भारत के केंद्र में है. एक तरह से ज्योतिषीय गणनाओं में उज्जैन न केवल भारत का केंद्र रहा है, बल्कि यह भारत की आत्मा का भी केंद्र रहा है.

महाकाल लोक कैसा होगा?

महाकाल लोक को पौराणिक सरोवर रुद्रसागर के किनारे विकसित किया गया है. विस्तार के बाद महाकाल मंदिर के सामने का मार्ग 70 मीटर चौड़ा हो गया है तथा महाकाल मंदिर चौराहे तक का मार्ग 24 मीटर चौड़ा किया जा रहा है. इसी के साथ, महाकाल मंदिर का क्षेत्र 2.2 हेक्टेयर से बढ़कर 20 हेक्टेयर से अधिक हो गया है. यहां भगवान शिव, देवी सती और दूसरे धार्मिक किस्सों से जुड़ी करीब 200 मूर्तियां और भित्ति चित्र बनाए गए हैं. श्रद्धालु हर एक भित्ति चित्र की कथा इस पर स्कैन कर सुन सकेंगे. सप्त ऋषि, नवग्रह मंडल, त्रिपुरासुर वध, कमल ताल में विराजित शिव, 108 स्तम्भों में शिव के आनंद तांडव का अंकन, शिव स्तम्भ, भव्य प्रवेश द्वार पर विराजित नंदी की विशाल प्रतिमाएं मौजूद हैं. महाकाल कॉरिडोर में देश का पहला नाइट गार्डन भी बनाया गया है.

महाकाल मंदिर का इतिहास

देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में उज्जैन का महाकाल मंदिर अकेला दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है. मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है. कई बार मंदिर को ध्वस्त करने के लिए आक्रांताओं ने कोशिश की लेकिन वह असफल रहे. महाकवि कालिदास और तुलसीदास की रचनाओं में महाकाल मंदिर व उज्जैन का उल्लेख है.कहा जाता है कि महाकाल मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पालनहार नंद जी से आठ पीढ़ी पूर्व हुई थी. शिवपुराण के अनुसार, मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद ज्योर्तिलिंग की प्रतिष्ठा नन्द से आठ पीढ़ी पूर्व एक गोप बालक द्वारा की गई थी. जब भगवान श्रीकृष्ण उज्जैन में शिक्षा प्राप्त करने आए तो उन्होंने महाकाल स्त्रोत का गान किया था. गोस्वामी तुलसीदास ने भी महाकाल मंदिर का उल्लेख किया.छठी शताब्दी में बुद्धकालीन राजा चंद्रप्रद्योत के समय महाकाल उत्सव हुआ था. इस मंदिर की महिमा का वर्णन बाणभट्ट, पद्मगुप्त, राजशेखर, राजा हर्षवर्धन, कवि तुलसीदास और रवीन्द्रनाथ की रचनाओं में भी मिलता है. मंदिर द्वापर युग का है लेकिन समय -समय पर इसका जीर्णोंद्धार होता रहा है। मंदिर परिसर से ईसवीं पूर्व द्वितीय शताब्दी के भी अवशेष मिले हैं, जो इस बात का प्रमाण है.

महाकाल मंदिर पर कब हुआ आक्रमण ?

11वीं सदी में गजनी के सेनापति और 13वीं सदी में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश के मंदिर ध्वस्त कराने के बाद कई राजाओं ने इसका दोबारा निर्माण करवाया.11वीं शताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया था. इसके बाद साल 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने भी महाकाल मंदिर पर हमला किया था. इस हमले में कई श्रद्धालुओं का कत्लेआम हुआ तथा स्थापित मूर्तियों को भी खंडित किया गया. तब धार के राजा देपालदेव ने भी हमला रोकने की कोशिश की. वह बड़ी संख्या में सेना लेकर उज्जैन के लिए निकल पड़े। हालांकि, इससे पहले ही इल्तुतमिश ने मंदिर तोड़ दिया.इसके बाद देपालदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया.

महाकाल मंदिर के जीर्णोद्धार की कहानी-500 साल तक जलसमाधि में रहे महाकाल

उज्जैन राजा विक्रमादित्य, राजा चंद्रप्रधोत, राजा भोज ने इस मंदिर में निर्माण कार्य करवाया था. लगभग हर कालखंड में हिंदू राजा, जिन्होंने उज्जैन और आसपास राज किया उन्होंने महाकाल के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. महाकाल मंदिर का जो वर्तमान स्वरूप है, उसे वर्ष 1734 से लेकर 1863 के बीच मराठा शासकों ने बनवाया था.
कहा जाता है कि मराठा राजाओं ने मालवा पर आक्रमण कर दिया था. 1728 से यहां मराठा राजाओं का राज शुरू हुआ। इसके बाद उज्जैन को भव्य रूप दिया गया. 1731 से 1809 तक उज्जैन मालवा की राजधानी बनी रही. इस बीच, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया और शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ कुंभ पर्व की भी शुरूआत हुई.

कई इतिहासकारों का कहना है कि, उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था जिसके शासनकाल में 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को नष्ट करने की कोशिश की गई. महाकाल के ज्योतिर्लिंग को करीब 500 साल तक मंदिर के भग्नावशेषों में ही पूजा जाता रहा. बाद में मराठा साम्राज्य ने महाकाल का भव्य मंदिर बनवाया. मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने भी कराया था. बाद में उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत हुई. सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण किया और आदेश दिया था कि मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर देना है तब पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को कुंड में छिपा दिया था. करीब 500 साल तक महाकाल कुंड में ही रहे. बाद में राणोजी सिंधिया ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया और ज्योतिर्लिंग की पुन: प्राणप्रतिष्ठा कराई.