धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव का निधन,सैफई में होगा अंतिम संस्कार

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री, देश के पूर्व रक्षामंत्री और सपा संरक्षक धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया है. उन्होंने आज सुबह 8.16 पर अंतिम सांस ली. 82 साल के मुलायम सिंह यादव को 22 अगस्त को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती किया गया था जहां वे वेंटिलेटर पर थे. मुलायम सिंह को एक अक्तूबर की रात को आइसीयू में शिफ्ट किया गया था. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और परिवार के अन्य सदस्य उनके साथ ही हैं. दिल्ली से उनका शव लाने की तैयारी हो रही है. यहां से फिर इटावा ले जाया जाएगा जहां सैफई में शाम 3 बजे अंतिम संस्कार होगा. धरतीपुत्र के अंतिम संस्कार में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के साथ सीएम योगी भी सैफई में मौजूद रहेंगे. मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद सपा कार्यकर्ताओं में शोक की लहर है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मौत की जानकारी देते हुए ट्वीट् किया, ‘’मेरे आदरणीय पिता जी और सबके नेता जी नहीं रहे’’

 

सफरनामा- शिक्षक से राजनेता-

पहलवान और शिक्षक रहे मुलायम की लंबी सियासी पारी रही, तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे, केंद्र में रक्षा मंत्री रहे. उन्हें बेहद साहसिक सियासी फैसलों के लिए भी जाना जाता है.एमए करने के बाद बतौर शिक्षक काम किया. मुलायम ने एमए की शिक्षा लेने के लिए शिकोहाबाद के डिग्री कालेज में प्रवेश लिया. एमए करके करहल के जैन इंटर कालेज से बीटी की और कुछ समय तक जैन इंटर कालेज में बतौर शिक्षक काम किया, पर राजनैतिक दिलचस्पी रखने वाले मुलायम सिंह चुप नहीं बैठे.

कहां से हुई राजनीतिक सफर की शुरुआत?

धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव की जड़ें गांव से जुड़ी हुई हैं. 22 नवंबर 1939 को इटावा के सैफई में पैदा हुए मुलायम को उनके पिता सुघर सिंह पहलवान बनाना चाहते थे, लेकिन मुलायम ने राजनीति के अखाड़े में सफलता पाई. इटावा से ग्रेजुएशन किया और राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए आगरा पहुंचे. जहां से छात्र राजनीति में सक्रिय हुए. राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा से जबरदस्त रूप से प्रभावित हुए. पहली बार 1966 में इटावा पहुंचने के बाद उन्हें लोहिया का सानिध्य मिला. 1967 में उन्होंने लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ा और वे जसवंतनगर सीट से उम्मीदवार बने और जीत हासिल की.

28 साल की उम्र में ही बन गए विधायक

मुलायम की विधायक नत्थू सिंह से नजदीकियां बढ़ीं. नत्थू सिंह ने 1967 के विधानसभा चुनाव में जसवंतनगर की अपनी सीट छोड़कर मुलायम को सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ाया और किस्मत के धनी मुलायम सिंह यादव 28 साल की उम्र में विधायक बन गए.

1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव जीते

1967 में लोहिया के निधन के बाद सोशलिस्ट पार्टी कमजोर हुई. नतीजा यह रहा कि मुलायम सिंह यादव को भी 1969 के विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. यूपी में इसके बाद का दौर काफी उथल-पुथल भरा रहा. हालांकि, कुछ समय बाद ही किसान नेता चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल यूपी में मजबूत हो रहा था. खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी ने जबरदस्त पैठ बना ली. लोहिया के निधन से कमजोर हो रही संयुक्त सोशलिस्ट दल को छोड़कर मुलायम भारतीय क्रांति दल के साथ आ गए. 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर चुनाव जीते और विधानसभा पहुंचे.

ऐसे बने लोकदल के प्रदेशाध्यक्ष बने

1974 में इमरजेंसी से ठीक पहले चरण सिंह ने अपनी पार्टी का विलय कमजोर पड़ चुकी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के साथ कर लिया. इसी के साथ भारतीय क्रांति दल, लोकदल बन गया. मुलायम के राजनीतिक करियर की तीसरी पार्टी रही. मुलायम ने इस पार्टी में रहते हुए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाई.

लोकदल का जनता पार्टी में विलय

इमरजेंसी के ठीक बाद 1977 में देश में जयप्रकाश नारायण की जनता पार्टी का अस्तित्व में आया. चौधरी चरण सिंह के लोकदल का विलय इसी पार्टी में हो गया. 1977 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद राज्य में जनता पार्टी सरकार बनी. नई सरकार में मुलायम सिंह को मंत्री भी बनाया गया. हालांकि, जनता पार्टी 1980 में ही टूट गई और इसके घटक दल एक-एक कर अलग हो गए.

जनता पार्टी की टूट

जनता पार्टी की टूट से कई पार्टियां बनीं. चौधरी चरण सिंह ने भी जनता पार्टी से अलग होकर जनता पार्टी (सेक्युलर) बनाई. मुलायम भी चरण सिंह के साथ चले गए. 1980 के विधानसभा चुनाव में मुलायम को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में मुलायम चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर के टिकट पर चुनाव लड़े थे.

1989 में ही पहली बार बने य़ूपी के सीएम

1980 के चुनाव के बाद चरण सिंह की जनता पार्टी सेक्युलर का नाम बदल गया और लोकदल हो गया. 1985 में राज्य में हुआ विधानसभा चुनाव में मुलायम लोकदल के टिकट पर ही जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 1987 में जब चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद जब उनके बेटे अजीत सिंह और मुलायम में विवाद हो गया. इसके बाद लोकदल के दो टुकड़े हो गए. एक दल बना अजीत सिंह का लोकदल (अ) और दूसरा मुलायम सिंह के नेतृत्व वाला लोकदल (ब). 1989 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह बोफोर्स घोटाले को लेकर कांग्रेस से बगावत कर अलग हुए, तब विपक्षी एकता की कोशिशें फिर शुरू हुईं. इसी के साथ एक बार फिर जनता दल का गठन हुआ और मुलायम सिंह यादव ने अपने लोकदल (ब) का विलय इसी जनता दल में करा दिया. इस फैसले का मुलायम को काफी फायदा भी हुआ और वे 1989 में ही पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे. 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए. अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई. 1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम सिंह जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े.

समाजवादी पार्टी की नींव

मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्तूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना की. इस पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल बना. पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव को 2016 में समाजवादी पार्टी का संरक्षक घोषित कर दिया था.

यूपी में 3 दिन के राजकीय शोक की घोषणा

मुलायम सिंह यादव के निधन पर उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है. मुलायम सिंह का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ होगा.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जताया शोक

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी मुलायम सिंह यादव के निधन पर शोक जताया। उन्होंने कहा, मुलायम सिंह यादव का निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है. साधारण परिवेश से आए मुलायम सिंह यादव जी की उपलब्धियां असाधारण थीं ‘धरती पुत्र’ मुलायम जी जमीन से जुड़े दिग्गज नेता थे. उनका सम्मान सभी दलों के लोग करते थे. उनके परिवार-जन व समर्थकों के प्रति मेरी गहन शोक-संवेदनाएं.

पीएम मोदी ने जताई गहरी संवेदना

पीएम नरेंद्र मोदी भी मुलायम सिंह यादव के निधन पर काफी भावुक नजर आए. उन्होंने एक के बाद एक ट्वीट कर मुलायम सिंह यादव के बारे में बहुत कुछ लिखा, इसके साथ ही उन्होंने मुलायम सिंह के साथ अपनी कई तस्वीरों को ट्वीट किया. पीएम मोदी ने अपने ट्वीटों की श्रृखंला में लिखा, “मुलायम सिंह यादव जी एक विलक्षण व्यक्तित्व के धनी थे. उन्हें एक विनम्र और जमीन से जुड़े नेता के रूप में व्यापक रूप से सराहा गया, जो लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील थे. उन्होंने लगन से लोगों की सेवा की और लोकनायक जेपी और डॉ. लोहिया के आदर्शों को लोकप्रिय बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. मुलायम सिंह यादव जी ने यूपी और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई.

बसपा सुप्रीमो ने दी श्रद्धांजलि

मुलायम सिंह यादव के निधन पर बसपा  सुप्रीमो मायावती ने भी उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने ट्विटर पर लिखा, समाजवादी पार्टी के व्योवृद्ध नेता व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन की खबर अति-दुःखद है. उनके परिवार व सभी शुभचिन्तकों के प्रति मेरी गहरी संवेदना. कुदरत उन सबको इस दुःख को सहन करने की शक्ति दे.

सीएम योगी ने कहा- समाजवाद के प्रमुख स्तंभ एवं संघर्षशील युग का अंत

सीएम योगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन अत्यंत दुखदाई है. उनके निधन से समाजवाद के प्रमुख स्तंभ एवं संघर्षशील युग का अंत हुआ है. सीएम योगी ने कहा कि ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति की कामना एवं शोकाकुल परिजनों एवं समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं.

प्रियंका गांधी ने जताया शोक

प्रियंका गांधी ने मुलायम सिंह यादव के निधन पर दुख जताया. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि मुलायम सिंह यादव के निधन का दुखद समाचार मिला. भारतीय राजनीति में उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री, भारत सरकार के रक्षामंत्री व सामाजिक न्याय के सशक्त पैरोकार के रूप में उनका अतुलनीय योगदान हमेशा याद रखा जाएगा. अखिलेश यादव व अन्य सभी प्रियजनों के प्रति मेरी गहरी शोक संवेदनाएं. ईश्वर मुलायम सिंह यादव को श्रीचरणों में स्थान दें.